Wednesday 3 June 2015

मन

बहुत दिनों के बाद कुछ लिखने का मन किया . मन भी बड़ा ही अजीब है ना . अपने हिस्साब से हमको ढालने की कोशिश करता रहता है . ईश्वर ने हमको सही निर्णय लेने के लिये दिमाग और मन दोनों दिए है . पर हम सुनते जायेदा अपने दिमाग की हैं.

अजीब लगा ना . सबको लगता है की हम अपने अपने मन की सुनते हैं . जो मन करता है वोह करते हैं . पर असल में हम अपने दिमाग की सुनते हैं और उसी का अनुसरण करते हैं. मन कभी भी आपको नहीं भटकाता . भटकते आप खुद हैं अपने दिमाग की आवाज़ सुन कर . जैसे आपको सिगरेट पीने की आदत है . याद करो की पहली बार कब और किधर पी थी . दोस्त ने बोला , " यार एक सुट्टा लगा ले क्या फर्क पड़ेगा " . लगाया क्या आपने ?

मन ने बोला , नहीं कोई देख लेगा , गलत है . पर आपका दिमाग बोला " क्या फर्क पड़ता है एक सुटे से . आप समझते रहे की आपके मन ने बोला की सिगरेट पी लो कोई फर्क नहीं पड़ता . पर असल में ये आवाज़ आपके दिमाग की थी . मन ने तो एक महीन सी आवाज़ में मना किया था.

असल में हमको शोर मचाने की बड़ी आदत है .हर चीज पे शोर मचाते है हम. दिमाग की आवाज़ भी शोर मचाती है . मन की आवाज़ महीन सी होती है जिसको हम सुनते ही नहीं .

पहली बार पापा की जेब से जब पैसे चुराए थे तो आपके मन में डर था , की पकडे गए तो ?  नहीं , ये गलत है . नहीं करना चाहिए ये . ये सब आपके मन ने बोला . पर आप सुनते ही किधर हो . अपने आप को खुद का राजा समझते हुए आपका दिमाग इन सब आवाज़ को दबा देता है .

आप वोही करते है जो आपको आसान लगता है . पर मन  आपको मुश्किल रास्तों की तरफ धकेलता है . कमज़ोर है हम ना . सो आसान रास्ते की तरफ पैर खुद बे खुद उठ जाते हैं.

सो आज जब मन ने बोला की बहुत हो गया जिंदगी की चक्की में पिसते हुए , खुद को कहीं इस बेदर्द भीड़ में खो देना. आवाज़ अच्छी सी और अपनी सी लगी आज. क्यूँ लगी आज मन की आवाज़ अपनी सी ?

पता नहीं , पर सोचा अब से अपनी जिंदगी के कुछ लम्हे खुद के लिये भी निकालेंगे खुद  से ही बातें करने को . कुछ सुनेगे और कुछ सुनायेंगे . सुनेंगे मन की और सुनायेंगे खुद को .  हसेंगे खुद के उप्पर और हसाएंगे खुद के ही साथियों को .

आज के लिये इतना ही . रात भी काफी गहरी हो गयी है . अब सोते हैं और सपनो में खोते हैं .

खयाल ए ज़िंदगी पर...जीने की तमन्ना जाग उठी..
आ चले अब मियादे .... जिंदगी जितनी

अतुल " अकेला "